नई दिल्ली। 17वें लोकसभा चुनाव का आगाज आज होने जा रहा है। कुल सात चरणों में होने जा रहे आम चुनावों के इस प्रथम चरण में 20 राज्यों की कुल 91 सीटों का फैसला मतदाता कर देंगे। इनमें आंध्र प्रदेश की सभी 25 लोकसभा सीटों, तेलंगाना की 17, असम की पांच, बिहार की चार, ओडिशा की चार, छत्तीसगढ़ की एक, जम्मू कश्मीर की दो, महाराष्ट्र की सात, अरुणाचलकी दो, मणिपुर की दो, मेघालय की दो, नगालैंड–मिजोरम की एक-एक, सिक्किम-त्रिपुरा की एकएक, उत्तर प्रदेश की आठ,उत्तराखंड की पांच, अंडमान-निकोबार और लक्षद्वीप की एक-एक और पश्चिम बंगाल की दो सीटों पर मतदान होना है।
नजर उत्तर प्रदेश में कैराना, मुजफ्फरनगरसहित आठ संसदीय सीटों पर होगी, जहां 96 प्रत्याशी मैदान में हैं। वहीं, बिहार की गया,नवादा, औरंगाबाद और जमुई, जम्मू-कश्मीर की बारामुला-कुपवाड़ा और जम्मू-पुंछ, प. बंगाल की कूचबिहार और अलीपुरद्वार व छत्तीसगढ़ की बस्तर सीट भी खास हैं। इस चरण में बड़े दलों के कई नेताओं और केंद्रीय मंत्रियों के भाग्य का फैसला ईवीएम में बंद हो जाएगा। 91 सीटों के लिए कुल 1279 प्रत्याशी मैदान में हैं। इनमें से 559 निर्दलीय हैं जबकि 89 महिला उम्मीदवार हैं। 37 लोकसभा क्षेत्रों को संवेदनशील घोषित किया गया है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेशपश्चिमी उत्तर प्रदेश से मिल जाता है रुझान
सर्वाधिक 80 लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश के पश्चिमी हिस्से की कुल आठ सीटों- कैराना, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, बिजनौर, बागपत, मेरठ, गाजियाबाद और गौतमबुद्धनगर पर पहले चरण में मत पड़ेंगे। पिछले दो आम चुनावों की बात करें तो उप्र में पहले चरण का चुनाव ट्रेंड सेट करता रहा है। यहां का रुझान पूरे चुनाव की दशा-दिशा तय कर देने वाला साबित होता रहा है। यही वजह है कि इस बार भी इस चरण के चुनाव पर सबकी निगाहें हैं। पश्चिम से चली धुव्रीकरण की बयार ने पिछले लोकसभा और बाद में विधानसभा चुनाव का सियासी परिदृश्य ही बदल दिया था। यह लगभग तय माना जा रहा है कि पश्चिम से चली बयार पूरे प्रदेश की आबोहवा बदलेगी, इसलिए मतदान से पूर्व धुव्रीकरण का रंग गाढ़ा करने के लिए भाजपा जहां राष्ट्रवाद का सहारा ले रही है, वहीं विपक्ष जातिवाद व सरकार की विफलताओं को मुख्य हथियार बनाए हुए है। भाजपा को सबसे तगड़ी चुनौती सपा, बसपा और रालोद के गठबंधन से ही मिल रही है। हालांकि, कई सीटों पर कांग्रेस भी मुकाबला त्रिकोणीय बनाने में जुटी है।
किया था क्लीन स्विप
2014 में प्रथम चरण की सभी आठ सीटों सहारनपुर, कैराना, मेरठ, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, बागपत, गौतमबुद्ध नगर व गाजियाबाद में भाजपा का एकछत्र परचम फहराया था। चौधरी चरण सिंह परिवार का अभेद्य किला भी ध्वस्त हो गया था और बसपा के दलित-मुस्लिम समीकरण की हवा निकल गई थी। लेकिन, कैराना में भाजपा सांसद हुकुम सिंह के निधन से रिक्त सीट पर उप चुनाव में विपक्षी एकता के सहारे रालोद की जीत हुई। भाजपा के लिए 2014 का प्रदर्शन फिर से दोहराना चुनौती राज्य के बदले सियासी हालात में सपा व बसपा गठजोड़ में रालोद के शामिल होने से भाजपा के लिए 2014 का प्रदर्शन फिर से दोहराना चुनौती होगा। गठबंधन भाजपा की राह में कांटे बिखेर रहा है तो कांग्रेस भी मुकाबलों को दिलचस्प बना रही है। सभी दलों के शीर्ष नेताओं की ताबड़तोड़ सभाएं और रोड़ शो ने सियासी पारा काफी बढ़ा दिया है।
दलित सियासत के गढ़ सहारनपुर पर सबकी नजर बसपा के उभार के बाद दलित राजनीति का गढ़ बने सहारनपुर पर सबकी निगाहें हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अलावा गठबंधन की ओर से मायावती, अखिलेश व अजित सिंह की सभाएं हो चुकी हैं। दलित-मुस्लिम बहुल क्षेत्र में कांग्रेस को इमरान मसूद के सहारे पश्चिम में खाता खुलने की उम्मीद है। गठबंधन की रैली में उमड़ी भीड़ ने कांग्रेस की चिंता को बढ़ा दिया है। भाजपा सांसद राघव लखन पाल, कांग्रेसके इमरान मसूद व गठबंधन के फजर्लुरहमान तिकोने मुकाबले में फंसे हैं। यहां मुस्लिमों के रुख से चुनावी तस्वीर स्पष्ट होगी।
बिजनौर और मेरठ की भी दलित राजनीति में अहम भूमिका
बिजनौर और मेरठ की भी दलित राजनीति में अहम भूमिका रही है। बिजनौर से बसपा प्रमुख मायावती सांसद निर्वाचित हो चुकी हैं। मेरठ में भी दलित-मुस्लिम समीकरण असर दिखाता रहा है। कांग्रेस ने नसीमुद्दीन सिद्दीकी को उतारकर चुनाव को रोचक बना दिया है। देखना है कि कभी बसपा सुप्रीमो मायावती के खास रहे सिद्दीकी मुस्लिमों में कितने कारगर होंगे? या फिर गठबंधन के मलूक नागर को मुस्लिम-दलित समीकरण का कितना लाभ पहुंचेगा? धुव्रीकरण भाजपा सांसद भारतेंद्र सिंह की नैया पार लगा पाएगा या नहीं? इसी तरह मेरठ सीट पर कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री बाबू बनारसी दास के पुत्र हरेंद्र अग्रवाल को उतार मुकाबले को रोचक बना दिया। गठबंधन ने पूर्व मंत्री याकूब कुरैशी को उतारा है। यहां भाजपा के सांसद राजेंद्र अग्रवाल तीसरी बार जीत की आस लगाए हैं।
कसौटी पर कैराना
पलायन के मुद्दे को लेकर चर्चा में रहे कैराना का चुनाव इस बार बेहद दिलचस्प बनता जा रहा है। भाजपा ने पलायन मुद्दा गर्माने वाले स्व. हुकुम सिंह की पुत्री का टिकट काटकर विधायक प्रदीप चौधरी पर दांव लगाया है। वहीं, रालोद के टिकट पर सांसद बनीं तबस्सुम बेगम अब सपा की साइकिल निशान पर गठबंधन की प्रत्याशी बनी हैं। कांग्रेस ने पूर्व सांसद हरेंद्र मलिक को चुनाव मैदान में उतारा है। जाटों में मजबूत पकड़ रखने वाले हरेंद्र चुनावी गणित को प्रभावित करने का दम रखते है।
तीन मंत्रियों की परीक्षा
बागपत सीट पर केंद्रीय मंत्री डा. सत्यपाल सिंह के अलावा केंद्र सरकार के मंत्री और पूर्व सेना प्रमुख जनरल वीके सिंह गाजियाबाद सीट से फिर चुनाव लड़ रहे हैं। वह गठबंधन के सुरेश बंसल और कांग्रेस की डॉली शर्मा से तिकोने मुकाबले में फंसे हैं। केंद्रीय मंत्री डा. महेश शर्मा एक बार फिर गौतमबुद्ध नगर सीट पर मैदान में हैं। यहां कांग्रेस ने अरविंद सिंह चौहान को उम्मीदवार बनाकर भाजपा की बेचैनी बढ़ा दी है। गठबंधन उम्मीदवार सत्यवीर नागर को मिल रहा समर्थन भी केंद्रीय मंत्री डा. शर्मा का सिरदर्द बढ़ाए हुए है।
पश्चिम बंगाल। प. बंगाल के उत्तरी हिस्से के दो संसदीय क्षेत्रों कूचबिहार और अलीपुरद्वार में मुकाबला दिलचस्प होगा। तृणमूल कांग्रेस 2009 और 2014 के प्रदर्शन को दोहराना चाहेगी जबकि भाजपा उसे पटखनी देने को तैयार है। बंगाल की कूचबिहार (एससी) और अलीपुरद्वार (एसटी) लोकसभा सीटों पर पहले चरण के लिए वोट डाले जाएंगे। लेकिन बांग्लादेश की सीमा से सटे व चायबागान के लिए मशहूर इन दोनों सीटों से चलने वाली वोट रूपी हवा किस ओर बहेगी, यह तो बाद में पता चलेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो तो भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने एक रैली इन इलाकों में की है। वहीं तीन अप्रैल से ही तृणमूल प्रमुख व मुख्यमंत्री ममता बनर्जी उत्तर बंगाल में डेरा जमाए हुए हैं। भाजपा तृणमूल से दोनों सीटें छीनने की कोशिश में है। इसका फायदा वाममोर्चा भी उठाने के चक्कर में है। हालांकि, कांग्रेस ने भी अपने प्रत्याशी दोनों सीटों पर उतारे हैं, लेकिन कोई बड़ा कांग्रेसी नेता प्रचार के लिए दिल्ली से नहीं पहुंचा।
कूचबिहार सीट
तृणमूल ने 2014 में जीते पार्थ प्रतिम राय को टिकट न देकर कुछ माह पहले फारवर्ड ब्लाक छोड़कर शामिल हुए परेश चंद्र अधिकारी को मैदान में उतारा है। वहीं भाजपा ने तृणमूल से छोड़कर आए निशिथ प्रमाणिक को प्रत्याशी बनाया है।
अलीपुरद्वार सीट
भाजपा ने स्थानीय विधायक व चायबागान श्रमिकों में अच्छी पकड़ रखने वाले जान बारला और तृणमूल ने 2014 में जीते अपने सांसद दशरथ तिर्के पर दांव लगाया है।
उत्तराखंड, देहरादून। उत्तराखंड की सभी पांचों सीटों पौड़ी गढ़वाल, टिहरी, हरिद्वार, नैनीताल और अल्मोड़ा के लिए पहले चरण में 11 अप्रैल को मतदान होगा। पांचों सीटों पर भाजपा और कांग्रेस के बीच ही मुख्य मुकाबले की संभावना है। हालांकि हरिद्वार व नैनीताल सीट पर बसपा मुकाबले का तीसरा कोण बनने की कोशिश कर रही है। 78,56,268 मतदाता पांच सीटों पर 52 प्रत्याशियों की किस्मत का फैसला करेंगे। प्रदेश की सभी पांच सीटों को 237 जोन व 1371 सेक्टर में बांटा गया है। कुल 11,229 बूथ में 697 बूथ अति संवेदनशील और 656 बूथ संवेदनशील श्रेणी में रखे गए हैं
जम्मू-कश्मीरबारामुला-कुपवाड़ा संसदीय सीट
बारामुला-कुपवाड़ा संसदीय सीट पर इस बार नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी और पीपुल्स कांफ्रेंस के बीच त्रिकोणीय मुकाबला है। पीडीपी ने इस सीट पर अपने बयानों को लेकर विवादो में रहने वाले मोहम्मद अकबर लोन को प्रत्याशी बनाया है जबकि पीडीपी ने कर्मचारी नेता अब्दुल कयूम वानी और पीपुल्स कांफ्रेंस ने मोहम्मद अकबर अली को अपना उम्मीदवार बनाया है। इस सीट पर कांग्रेस और भाजपा ने भी अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं। कांग्रेस ने हाजी फारूक अहमद मीर और भाजपा ने मोहम्मद मकबूल वार को उम्मीदवार बनाया है। मगर मुकाबला पीडीपी, नेंका और पीपुल्स कांफ्रेंस के बीच ही है। यह संसदीय क्षेत्र तीन जिलों के पंद्रह विधानसभा क्षेत्रों में फैला हुआ है।
जम्मू-कश्मीर की दो संसदीय सीटों के लिए पहले चरण में गुरुवार को मतदान होगा। दोनों सीटों जम्मू-पुंछ और बारामुला-कुपवाड़ा पर चुनाव लड़ रहे 33 उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला 33 लाख मतदाता करेंगे। जम्मू पुंछ संसदीय सीट के लिए 24 और बारामुला संसदीय सीट के लिए नौ उम्मीदवार मैदान में हैं।
जम्मू-पुंछ संसदीय सीट
जम्मू-पुंछ संसदीय सीट पर इस बार कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधा मुकाबला होगा। भाजपा की तरफ से वर्तमान सांसद जुगल किशोर और कांग्रेस की ओर से रमण भल्ला चुनाव मैदान में हैं। वहीं डोगरा स्वाभिमान संगठन के चौधरी लाल सिंह सहित कई निर्दलीय उम्मीदवार भी चुनाव लड़ रहे हैं। नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी ने इस सीट से कोई उम्मीदवार चुनाव मैदान में नहीं उतारा है। इस कारण इस सीट पर सीधा मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच ही है। जम्मू-पुंछ संसदीय क्षेत्र चार जिलों के बीस विधानसभा क्षेत्रों में फैला हुआ है।
बिहारगया। लोकतंत्र के चुनावी महापर्व का प्रचार थम चुका है। अब मतदाताओं की बारी है, जब बिहार की चार सीटों पर पहले चरण का मतदान होगा। इनमें गया, औरंगाबाद और नवादा की सीटें मगध प्रमंडल क्षेत्र की हैं। एक जमुई की सीट है, जो नवादा की सीमा से लगती है। जिन सीटों पर चुनाव हो रहे हैं, वहां भौगोलिक बनावट के कारण मतदाताओं का रुख एक-दूसरे को प्रभावित करता रहा है। यहां की सियासत और मतदाताओं के मिजाज के आईने में देखा जाए तो एनडीए व महागठबंधन के बीच वर्चस्व की जबर्दस्त लड़ाई है। अभी इन सारी सीटों पर एनडीए काबिज है। महागठबंधन सीट झपटने को
जोर लगाए है तो एनडीए इसे बरकरार रखने को। बिहार में चुनाव की शुरुआत इसी इलाके से हुई और आने वाले चरणों में भी बेशक इसका प्रभाव पड़ेगा, इसलिए दोनों ही खेमों ने कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ रखी है। इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इन क्षेत्रों में दो-दो सभा कर चुके हैं। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह, केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह और लोजपा सुप्रीमो रामविलास पासवान ने ताबड़तोड़ सभा की है। वहीं, जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और भाजपा के वरिष्ठ नेता व उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी ने सुदूर इलाके तक सभा की है। महागठबंधन के खेमे में लालू प्रसाद के पुत्र व पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव सभा पर सभा कर रहे हैं। प्रचार के अंतिम चरण में राहुल गांधी और दो दिन पहले कांग्रेस में शामिल हुए शत्रुघ्न सिन्हा भी पहुंचे। गांव-कस्बों से शहर तक एक बात बहुत स्पष्ट दिख रही है।
किसी को सिर्फ कुनबाई समीकरणों का भरोसा बहुत महंगा पड़ सकता है, क्योंकि इस चुनाव में इसका घेरा बहुत हद तक टूटता दिख रहा है। विकास के मुद्दे हावी हैं और मतदाता भी यह अच्छी तरह परख रहा है कि इस पर किसका क्या रुख है। हालांकि, विकास के सवाल पर सियासी मंचों पर आरोप-प्रत्यारोप के स्वर तीखे भी दिखे। एनडीए ने जहां महागठबंधन में शामिल दलों के शासनकाल को विकास में अवरोध बनाया, वहीं महागठबंधन एनडीए के दावों को सिर्फ छलावा बताता रहा। अब मतदाता ही यह फैसला करेंगे कि किसकी बातों ने कितना प्रभाव छोड़ा है। पूरे प्रचार के दौरान जहां एनडीए ने देश की सुरक्षा व विकास को मुद्दे के केंद्र में रखा, वहीं बिहार में महागठबंधन के सबसे बड़े दल राजद की ओर से कमान संभाले तेजस्वी संविधान को बचाने की दुहाई देते हुए अपने परिवार को एनडीए द्वारा फंसाए जाने की ही बात कहते रहे। राहुल गांधी ने भी सीधे नरेंद्र मोदी की चौकीदारी पर निशाना साधा। दोनों के क्या मुद्दे हैं, वह आमने-सामने हैं।
बहरहाल, गया से पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी महागठबंधन में शामिल हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (सेकुलर) के प्रत्याशी हैं। उनके सामने पूर्व सांसद स्व. भगवती देवी के पुत्र विजय कुमार एनडीए खेमे से जदयू के प्रत्याशी हैं। भगवती देवी वही हैं, जो पत्थर तोड़ती थीं और संसद तक पहुंची थीं। यहां वजूद की बड़ी लड़ाई है। औरंगाबाद में पिछले दो चुनावों से लगातार जीत रहे सुशील सिंह भाजपा प्रत्याशी हैं। उनके सामने हम प्रत्याशी उपेंद्र प्रसाद हैं तो नवादा में लोजपा प्रत्याशी चंदन कुमार और राजद से विभा देवी। वहां के मौजूदा सांसद केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह इस बार बेगूसराय शिफ्ट हो गए हैं। बगल की सीट जमुई में चिराग पासवान लोजपा उम्मीदवार हैं तो रालोसपा से भूदेव चौधरी। एक दिन बाद इन सभी का भाग्य इवीएम में बंद होने वाला है।
महाराष्ट. महाराष्ट्र की 48 में से सात सीटों पर 11 अप्रैल को मतदान होगा। पहले चरण के मतदान में जिन प्रमुख प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला होगा उनमें केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी (नागपुर) और हंसराज अहीर (चंद्रपुर) शामिल हैं। महाराष्ट्र के विदर्भ की इन सीटों पर कुल 116 प्रत्याशी मैदान में है
इन 7 सीटों पर चुनाव
वर्धा, नागपुर, रामटेक, भंडारा-गोंदिया, गढ़चिरौली-चिमूर, चंद्रपुर और यवतमाल- वशिम
कायम है पृथक विदर्भ का मुद्दा
केंद्र और राज्य में सरकार होने के बावजूद ‘पृथक विदर्भ’ के मुद्दे पर एक कदम भी आगे न बढ़ना विदर्भ क्षेत्र में भाजपा के गले की हड्डी बना हुआ है। भारतीय जनता पार्टी हमेशा से छोटे राज्यों की पक्षधर रही है। इसी नीति के तहत भाजपा ने बिहार से झारखंड, उत्तर प्रदेश से उत्तराखंड और मध्य प्रदेश से छत्तीसगढ़ को पृथक कर अलग राज्य बनाने का समर्थन किया। जबकि आंध्र प्रदेश से तेलंगाना के पृथक होने में पैदा हुई विसंगतियों पर आज भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी सभाओं में टिप्पणी करने से नहीं चूकते।
राजनीतिक रूप से भाजपा हमेशा पृथक विदर्भ की समर्थक रही है। राज्य और केंद्र के उसके घोषणा पत्रों में भी वह इस मुद्दे को शामिल करती रही है। लेकिन 2014 के बाद केंद्र में नितिन गडकरी जैसे ताकतवर नेता और राज्य में देवेंद्र फड़नवीस के मुख्यमंत्री रहते इस मुद्दे पर पांच साल तक भाजपा की चुप्पी अन्य विदर्भवादियों को भाजपा को घेरने का मौका दे रही है। क्योंकि ये दोनों ही नेता विदर्भ के हैं, और सत्ता से बाहर रहने पर प्रखरता से पृथक विदर्भ की बात करते रहे हैं।
कुछ दिनों पहले ही नागपुर के एक सभागार में हुए नितिन गडकरी के एक कार्यक्रम में विदर्भ राज्य समर्थक कुछ कार्यकर्ताओं ने नारेबाजी शुरू कर दी थी। तब उन प्रदर्शनकारियों को कार्यक्रम स्थल से बाहर निकालने का आदेश गडकरी को देना पड़ा था। गडकरी के इस व्यवहार पर निशाना साधते हुए पिछले चुनाव में उनसे पराजित हुए कांग्रेस नेता विलास मुत्तेमवार कहते हैं कि सत्ता में आने के बाद भाजपा नेता पृथक विदर्भ की मांग भूल गए हैं।
जबकि गडकरी कहते हैं कि यह मांग न वह स्वयं भूले हैं, न ही उनकी पार्टी भूली है। उचित समय पर इस संबंध में निर्णय किया जाएगा। कांग्रेस के शासनकाल में ज्यादातर मुख्यमंत्री पश्चिम महाराष्ट्र के हुए हैं। तब यह आरोप लगता रहा है कि बजट में विदर्भ के विकास के लिए निर्धारित की जाने वाली
राशि का बड़ा हिस्सा पश्चिम महाराष्ट्र में खर्च कर दिया जाता है। गडकरी दावा करते हैं कि पिछले पांच साल में विदर्भ का कोई बैक लॉग नहीं रह गया है। बल्कि बैक लॉग से ज्यादा राशि विदर्भ के विकास पर खर्च की जा चुकी है।
बता दें कि राज्य और केंद्र में भाजपा की सबसे पुरानी मित्र शिवसेना महाराष्ट्र को तोड़े जाने का विरोध करती रही है। कुछ दिनों पहले शिवसेना के मुखपत्र सामना के संपादकीय में गडकरी के इस दावे की पुष्टि करते हुए कहा गया कि अब विदर्भ के लोग भी पृथक विदर्भ की मांग से इत्तेफाक नहीं रखते। इसका सुबूत विदर्भ क्षेत्र से चुनकर आने वाले शिवसेना के चार विधायक और चार सांसद हैं।
भाजपा के पास विदर्भ की 62 में से 44 विधानसभा व 10 में से छह लोकसभा सीटें हैं। लेकिन भाजपा और शिवसेना के विकास के तर्क विदर्भवादियों के गले नहीं उतरते। फड़नवीस सरकार में ही महाधिवक्ता रह चुके श्रीहरि अणे ने पृथक विदर्भ का मुद्दा उठा रखा है। विदर्भ की 10 में से आठ लोकसभा सीटों पर उन्होंने अपने उम्मीदवार भी खड़े कर रखे हैं। उनका दावा है कि ये उम्मीदवार भाजपा को तगड़ा नुकसान पहुंचाएंगे।