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मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने नगरीय निकायों के अध्यक्ष व महापौर पद के आरक्षण पर लगाई रोक

ग्वालियर। मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की ग्वालियर खंडपीठ ने नगर निगम, नगर पालिका व नगर पंचायतों के लिए 10 व 11 दिसंबर 2020 को जारी आरक्षण अधिसूचना पर रोक लगा दी। कोर्ट ने रोक लगाते हुए कहा कि शासन ने आरक्षण में रोटेशन प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है। रोटेशन प्रक्रिया का पालन होना चाहिए। शासन को विस्तृत जवाब पेश करने का आदेश दिया है। अप्रैल में इस याचिका की फिर से सुनवाई होगी। कोर्ट के इस आदेश से नगर निगम, नगर पालिका व नगर पंचायतों के चुनाव पर संकट आ गया है, क्योंकि आरक्षण की अधिसूचना पर रोक होने से चुनाव कराना संभव नहीं है।
बहोड़ापुर निवासी अधिवक्ता मनवर्धन सिंह तोमर ने उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की। अधिवक्ता अभिषेक सिंह भदौरिया ने तर्क दिया कि शासन ने 79 नगर निगम, नगर पालिका व नगर पंचायतों को अनुसूचति जाति व जनजाति के लिए आरक्षित किया है। जैसे कि मुरैना व उज्जैन नगर निगम के महापौर का पद वर्ष 2014 में अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित था, लेकिन 2020 में भी इन सीटों को अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित रखा है।
नगर पालिका व नगर पंचायतों में भी ऐसा ही किया गया है। जबकि 2020 के चुनाव में रोटेशन प्रणाली का पालन करते हुए बदलाव करना था। रोटेशन प्रक्रिया का पालन नहीं अन्य वर्ग के लोग चुनाव नहीं लड़ पा रहे हैं। ये लोगों के संवैधानिक अधिकारों का हनन है।
शासन की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता अंकुर मोदी उपस्थित हुए थे। दोनों पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने गत दिवस फैसला सुरक्षित कर लिया था। शनिवार को इस याचिका में कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया। आरक्षण पर रोक लगा दी। डबरा व इंदरगढ़ को लेकर दायर जनहित याचिका के साथ इस याचिका के साथ संलग्न कर दिया गया। तीनों याचिकाओं की 24 अप्रैल को सुनवाई सम्भावित है।


