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इस वजह से महिलाओं को ज्यादा होती है भूलने की बीमारी

हैल्‍थ डेस्‍क। सर्जरी के कारण कमउम्र में ही महिलाएं डिमेंशिया और अल्जाइमर्स जैसी बीमारियों की गिरफ्त में आ जाती हैं.

इस वजह से महिलाओं को ज्यादा होती है भूलने की बीमारी प्रतीकात्मक फोटो
बच्चेदानी या यूरटस का काम सिर्फ बच्चे को जन्म देना नहीं है, इसका ताल्लुक महिलाओं की याददाश्त से भी है. हाल ही में एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी में हुए एक शोध ने इसपर मुहर लगा दी. मेडिकल जर्नल एंडोक्राइनोलॉजी में छपी इस स्टडी के अनुसार जो महिलाएं किसी भी वजह से बच्चेदानी हटवाती हैं, उनमें डिमेंशिया यानी भूलने की बीमारी का खतरा बहुत ज्यादा रहता है. इस स्टडी से भारतीय महिलाओं पर भी खतरा मंडरा रहा है क्योंकि यहां हिस्टेरेक्टॉमी यानी बच्चेदानी हटाने के ऑपरेशन का प्रतिशत तेजी से बढ़ा है.

क्या कहती है स्टडी
एएसयू में बिहेवियर न्यूरोसाइंस ऑफ मैमोरी एंड एजिंग लैब के तहत एक स्टडी की गई. ये कहती है कि जैसे ही महिलाएं यूटरस हटाने की सर्जरी कराती हैं, ये उनमें अर्ली मेनोपॉज ला देता है. यही वजह है कि सर्जरी के तुरंत बाद ही कम उम्र में ही महिलाएं भूलने लगती हैं. इसे ब्रेन फॉग भी कहते हैं, जो कि यूटरस से निकलने वाले हॉर्मोन्स की वजह से होता है. इसपर पहले भी काफी शोध हो चुके हैं लेकिन हालिया शोध ने यूटरस-ब्रेन के संबंध को पक्का कर दिया. वैज्ञानिकों ने पाया कि बच्चादानी हटाते ही शॉर्ट-टर्म मैमोरी हो जाती है और समझ पर भी असर पड़ता है.

ऐसे हुई शोध
शोध में शामिल एएसयू के सीनियर वैज्ञानिक डॉ हैदर बाइमोंटे नेल्सन कहते हैं कि हम जानना चाहते थे कि यूटरस का मस्तिष्क से संबंध है या नहीं. इसके लिए लैब में 16 मादा चूहों पर प्रयोग किया गया. इनमें से आधे की बच्चेदानी हटा दी गई, जबकि आधों पर नकली सर्जरी की गई. सर्जरी के कुछ ही दिनों बाद जिन चूहों की बच्चेदानी हटाई गई थी, उनमें याददाश्त और समझ की कमी देखी गई.

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महिलाएं ज्यादा भूलती हैं
इससे पहले यूटरस को केवल प्रजनन अंग माना जाता रहा और माना गया कि एक उम्र के बाद इसे हटाने से कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन इसके कॉग्निटिव व्यवहार से संबंध ने वैज्ञानिकों को एक नई दिशा दी है. इस स्टडी से ये बात भी थोड़ी साफ हो रही है कि क्यों पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में डिमेंशिया की बीमारी ज्यादा होती है. डिमेंशिया कंर्सोटियम के अनुसार महिलाओं और पुरुषों में डिमेंशिया का प्रतिशत क्रमशः 61 और 39 प्रतिशत है.

यहां पर है खतरा
भारत में भी इस स्टडी के नतीजे प्रासंगिक हैं. यहां विभिन्न वजहों से महिलाओं में बच्चेदानी हटवाने वाली सर्जरी बढ़ी है. साल 2016 का नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे कहता है कि हिस्टेरेक्टॉमी कराने वाली महिलाओं की संख्या तेजी से ऊपर गई है, जिनकी उम्र 15 से 49 साल के बीच है. बच्चेदानी की बीमारियों जैसे सिस्ट, यूटरस के कैंसर, ब्लीडिंग या फिर किसी संक्रमण के होने से डॉक्टर खुद ऐसी सलाह देते हैं लेकिन ये उम्र औसतन 34 साल होनी चाहिए. हालांकि हाल में नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की रिकमंडेड उम्र को नजरअंदाज कर सर्जरी की जा रही है, जो कि कम उम्र में ही महिलाओं को काफी बीमारियां दे रही हैं.

मेडिकल जर्नल में छपी इस स्टडी के बाद नए सिरे से प्रयोग शुरू हो चुके हैं जो मस्तिष्क के साथ यूटरस के संबंधों पर रिसर्च कर रहे हैं.

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