
Lok Sabha Election 2019 Results सामने आ चुके हैं। भाजपा ने अकेले बहुमत का आंकड़ा पार कर लिया है। लोकसभा में बहुमत के लिए किसी भी राजनीतिक दल को 272 सीटों की जरूरत होती है। भाजपा ने अकेले 303 सीटें जीती हैं। अरुणांचल की पश्चिमी लोकसभा सीट पर अभीअभी परिणाम घोषित कर दिये गये। भाजपा के किरण रिजिजु यहां पर कांग्रेस के नबम टिकु से से जीते। वहीं भाजपा नेतृत्व वाले एनडीए को कुल 352 सीटें प्राप्त हुई हैं, जो प्रचंड बहुमत है।
इसके विपरीत कांग्रेस को मात्र 51 सीटें मिली हैं, जबकि कांग्रेस के गठबंधन वाले यूपीए को कुल 87 सीटें मिली हैं। नियमानुसार लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का दर्जा प्राप्त करने के लिए किसी भी राजनीतिक दल को अकेले कम से कम 10 फीसद सीटें जीतनी होती हैं। लोकसभा में कुल 543 सीटों के लिए सीधा चुनाव होता है और 2 एंग्लो-इंडियन समुदाय के लोगों को राष्ट्रपति चुनते हैं। मतलब 545 सीटों वाली लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का दर्जा प्राप्त करने के लिए किसी भी राजनीतिक दल को कम से कम 55 सीटें जीतनी जरूरी हैं।
2014 में भी कांग्रेस को नहीं मिला था नेता प्रतिपक्ष का दर्जा
पिछली बार भी कांग्रेस को मात्र 44 सीटें प्राप्त हुई थीं, इस वजह से 2014 में भी कांग्रेस को नेता प्रतिपक्ष का दर्जा नहीं मिला था। हालांकि, कांग्रेस लोकसभा में सबसे बड़ा विपक्षी दल था। इसलिए केंद्र की एनडीए सरकार कांग्रेस के नेता सदन मल्लिकार्जुन खड़गे को जरूरी बैठकों में बुलाती रही है। हालांकि इन बैठकों में मल्लिकार्जुन खड़गे को नेता प्रतिपक्ष के तौर पर नहीं, बल्कि लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता के रूप में बुलाया जाता था। यही वजह है कि लोकपाल की नियुक्ति समेत कई अहम बैठकों में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता के रूप में आमंत्रित किए जाने पर मल्लिकार्जुन खड़गे शामिल नहीं हुए थे।
मल्लिकार्जुन खड़गे ये कहते हुए इन अहम बैठकों का विरोध करते रहे कि जब तक उन्हें नेता प्रतिपक्ष का दर्जा नहीं दिया जाता, वह इस तरह की बैठकों में शामिल नहीं होंगे। इस बार भी कांग्रेस बहुमत तो दूर, नेता प्रतिपक्ष बनने लायक सीटें भी नहीं जीत सकी है। लिहाजा इस बार भी कांग्रेस को नेता प्रतिपक्ष का दर्जा मिलना मुश्किल ही है। कम सीटों के बावजूद सबसे बड़े विपक्षी दल के सदन के नेता को, नेता प्रतिपक्ष का दर्जा देना है या नहीं ये केंद्र सरकार पर भी निर्भर करता है।
कौन होगा कांग्रेस का नेता सदन
पहले सरकार और फिर नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी गंवाने वाली कांग्रेस के सामने मुश्किलें यहीं खत्म नहीं होती। कांग्रेस के सामने अब भी सबसे बड़ी मुश्किल है नेता सदन चुनने की। नेता सदन का मतलब होता है जो लोकसभा में पार्टी के सांसदों का नेतृत्व कर सके। अहम बहस, मुद्दों और मौकों पर पार्टी का पक्ष मजबूती से रख सके। इसके लिए न केवल अनुभव और जानकारी की जरूरत होती है, बल्कि नेता प्रतिपक्ष ऐसा होना चाहिए जो अन्य दलों के लिए स्वीकार्य हो और जिसे बाकी दल भी गंभीरता से लें। कांग्रेस के मौजूदा सदन के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे कर्नाटक की गुलबर्गा सीट हार चुके हैं। यहां भाजपा नेता डा. उमेश जाधव ने विजय प्राप्त की है। इसके अलावा मध्य प्रदेश की गुना सीट से कांग्रेस के एक और दिग्गज नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया सीट हार चुके हैं। ऐसे में कांग्रेस के आगे सदन का नेता चुनने की भी चुनौती खड़ी हो गई है।
राहुल गांधी क्यों नहीं
राहुल गांधी के लोकसभा में नेता सदन बनने की संभावना बहुत कम है, इसकी कई वजहें हैं। उनके पास राजनीतिक अनुभव की बहुत कमी है। इसके अलावा वह सभी दलों के लिए स्वीकार्य भी नहीं है, जैसा कि लोकसभा चुनाव 2019 से पहले महागठबंधन की कवायद में दिख चुका है। लगभग सभी दलों ने कांग्रेस को महागठबंधन से अलग कर दिया था। राहुल गांधी खुद भी नेता सदन का पद लेना नहीं चाहेंगे, क्योंकि उन्हें पता है कि उन्हें नेता प्रतिपक्ष का दर्जा फिर भी नहीं मिलेगा। इसके अलावा कांग्रेस के अंदर भी राहुल गांधी के नेतृत्व को लेकर कई बार सवाल उठ चुके हैं। अमेठी की पारंपरिक सीट से हारने और पार्टी की दो लोकसभा चुनावों में बुरी हार ने इन सवालों को और धार दे दी है।


