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CBI से क्यों होते हैं इतने पंगे, तो क्या इसलिए SC ने कहा था “पिंजरे में बन्द तोता”

वेब स्त्रोत। सीबीआई बनाम ममता बनर्जी का मुद्दा आज देशभर में चर्चा में है। जहां सीबीआई कह रही है कि वह सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर शारदा घोटाले की जांच रही है, वहीं ममता बनर्जी का कहना है कि मोदी सरकार सीबीआई के बहाने उनसे राजनीतिक बदला ले रही है। वैसे सीबीआई को लेकर ऐसे विवाद नए नहीं हैं। पढ़िए इस बारे में –

– केंद्र में जो भी सरकार रही, उस पर सीबीआई के दुरुपयोग के आरोप लगे। अभी मायावती, अखिलेश यादव, लालू यादव का परिवार और कांग्रेस भी आरोप लगा रहे हैं कि सीबीआई मोदी सरकार के निशाने पर काम कर रही है। इससे पहले जब कांग्रेस सत्ता में थी, तब उस पर भी ऐसा ही आरोप लगे। यूपीए सरकार के दौरान कांग्रेस ने कथित रूप से सीबीआई का भय दिखाकर बसपा की मायावती और सपा के मुलायम पर अंकुश लगाया था।

– यही कारण है कि बीते दिनों आंध्रप्रदेश, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल सीबीआई के मामले में केंद्र को दी अपनी सहमति वापस ले चुके हैं। यानि अब सीबीआई को यहां कार्रवाई करने से पहले राज्य सरकार से अनुमति लेना होगी।

– कुल मिलाकर तमाम तरह के राजनैतिक रोड़ों का सामना करते हुए किसी भी जांच को अंजाम तक पहुंचाना सीबीआई के लिए मुश्किल हो रहा है। शायद यही कारण है कि इसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठते रहे हैं।

ऐसे अस्तित्व में आई थी CBI

सीबीआई भारत सरकार के अंतर्गत काम करती है। इसकी स्थापना 1941 में स्पेशल पुलिस इस्टेब्लिशमेंट के तौर पर आंतरिक सुरक्षा की देखरेख के उद्देश्य से की गई थी और 1963 में संस्था का नाम बदलकर सीबीआई रख दिया गया।

सीबीआई संवैधानिक या असंवैधानिक

2013 में सीबीआई के अधिकारों को गोवाहाटी हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी। कोर्ट ने अपने फैसले में सीबीआई को असंवैधानिक करार दिया था। केंद्र सरकार ने तुरत-फुरत इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाकर स्टे ले लिया। तब से लेकर अब तक सुप्रीम कोर्ट में वह अपील पेंडिंग है। यानि कोई भी केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट को अपने ‘कब्जे’ से छोड़ना नहीं चाहती है।

सुप्रीम कोर्ट ने इसलिए कहा था ‘पिंजरे में बंद तोता’

कोयला खदान आवंटन घोटाले की सुनवाई करते हुए एक बार सुप्रीम कोर्ट ने इस जांच एजेंसी को ‘पिंजरे में बंद तोता’ कहा था। दरअसल, उस सुनवाई के दौरान सर्वोच्च अदालत को पता चला था कि सीबीआई ने रिपोर्ट में बदलाव किए हैं और अदालत में पेश किए जाने से पहले उसकी कॉपी तत्कालीन कानून मंत्री को दिखाई थी।

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