PM की दूसरी शादी से बैन हुआ था पाकिस्तान में ट्रिपल तलाक, जानिए 22 देशों में क्या थी वजह

नई दिल्ली। ट्रिपल तलाक बिल की लोकसभा में मंजूरी के बाद इसके कानून बनने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। एेसे में भारत भी पाकिस्तान समेत उन 22 देशों में शामिल हो गया है, जहां तीन तलाक पर प्रतिबंध है। दुनिभर में मिस्र पहला देश था, जहां सबसे पहले इस प्रथा को बैन किया गया था।1929 में मिस्र में मुस्लिम जजों की खंडपीठ ने सर्वसम्मति से तीन तलाक को असंवैधानिक करार दिया था। इसके बाद उसी साल 1929 में मिस्र से प्रेरणा लेकर सूडान की कोर्ट ने भी अपने देश में तीन तलाक पर प्रतिबंध लगा दिया।
भारत समेत इन 22 देशों में है प्रतिबंध
भारत, पाकिस्तान, मिस्र, सूडान, बांग्लादेश, श्रीलंका, इराक, सीरिया, साइप्रस, तुर्की, जॉर्डन, अल्जीरिया, ईरान, ब्र्रुनेई, मोरक्को, कतर, यूएई, ट्यूनीशिया, मलेशिया का सारावाक राज्य, इंडोनेशिया, मलेशिया और सऊदी अरब में भी तीन तलाक पर बैन है।
पाकिस्तान में PM की दूसरी शादी बनी वजह
अगर हम अपने पड़ोसी देश पाकिस्तान की बात करें तो यहां एक बड़े घटनाक्रम के बाद ट्रिपल तलाक के लिए कानून लाया गया था। सन् 1955 में पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री मोहम्मद अली बोगरा ने अपनी पहली पत्नी को तलाक दिए बिना दूसरी शादी कर ली। इसके चलते देश भर की महिलाएं इसके विरोध उठ खड़ी हुईं, जिसके बाद 1956 में तीन तलाक पर बैन लगा दिया गया।
बांग्लादेश और श्रीलंका में भी कुप्रथा पर प्रतिबंध
भारत के सहयोग से 1971 में पाकिस्तान से अलग हुए बांग्लादेश ने भी संविधान में संशोधन कर तीन तलाक को बैन कर दिया गया। यहां तलाक से पहले यूनियन काउंसिल के चेयरमैन को शादी खत्म करने से जुड़ा एक नोटिस देना होता है। वहीं, श्रीलंका में तीन तलाक को कई विद्वानों ने एक आदर्श कानून करार दिया है। यहां मैरिज एंड डिवोर्स (मुस्लिम) एक्ट 1951 के तहत पत्नी से तलाक चाहने वाले पति को एक मुस्लिम जज को नोटिस देना होगा, जिसमें उसकी पत्नी के रिश्तेदार, उसके घर के बड़े लोग और इलाके के प्रभावशाली मुसलमान भी शामिल होंगे।
शरिया कोर्ट के कानून को सरकारी कोर्ट में बदला
साल 1959 में इराक दुनिया का पहला अरब देश बना था, जिसने शरिया कोर्ट के कानूनों को सरकारी कोर्ट के कानूनों के साथ बदल दिया था। इसके साथ ही यहां तीन तलाक खत्म कर दिया गया। इराक के पर्सनल स्टेटस लॉ के मुताबिक ‘तीन बार तलाक बोलने को सिर्फ एक ही तलाक माना जाएगा।’ 1959 के इराक लॉ ऑफ पर्सनल स्टेटस के तहत पति और पत्नी दोनों को ही अलग-अलग रहने का अधिकार दिया गया है।
भारत में शाह बानो के तलाक से शुरू हुआ विरोध
62 साल की मुस्लिम महिला को 1978 में उसके पति ने तलाक दे दिया। अपनी और अपने बच्चों की जीविका का कोई साधन नहीं होने पर शाह बानो ने गुजारे भत्ते के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया। सुप्रीम कोर्ट ने 1985 में शाह बानो के हक में फैसला सुनाया। पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के विरोध के चलते 1986 में पूर्ण बहुमत वाली राजीव गांधी सरकार ने संसद में कानून पास कर, अदालत के निर्णय को पलट दिया।
ट्रिपल तलाक के विरोध और समर्थन में दलीलें
सात महिला याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में शादी तोड़ने के मर्दों के हक को मौलिक अधिकारों के खिलाफ बताया था। महिलाओं का कहना था कि वह 70 साल से इस शिकंजे में फंसे हैं। कुरान में कहीं तीन तलाक का जिक्र नहीं है। वहीं, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के मुताबिक कानून को धार्मिक मामलों में दखल बताया है। इसे संविधान के 25 और 26 अनुच्छेद में दी गई धर्म और उससे जुड़ी परंपराओं को मानने की आजादी के खिलाफ बताया है।