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*ये क्या मध्यप्रदेश में धार्मिक और ऐतिहासिक स्थलों को पवित्र घोषित कर भूली सरकार*

*ये क्या मध्यप्रदेश में धार्मिक और ऐतिहासिक स्थलों को पवित्र घोषित कर भूली सरकार*

भोपाल। मध्य प्रदेश में सरकार ने धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व के नगरों को पवित्र शहर तो घोषित कर दिया लेकिन यह पवित्रता डेढ़ दशक बाद भी जमीन पर नजर नहीं आ रही है। सरकार के एलान महज कागजी ही साबित हुए क्योंकि निगरानी की पुख्ता व्यवस्था नहीं हो पाई।

*पवित्र नगर घोषित किए गए*

धार्मिक-आध्यात्मिक महत्व के 17 नगरों की व्यवस्था में कोई बदलाव नजर नहीं आया। पवित्र नगर के मायने और मापदंड क्या हैं इस बात को देखने-समझाने के प्रयास नहीं हुए। प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग महाकाल उज्जैन व ओंकारेश्वर हो या पन्नाा-दतिया, यहां अंडा-मछली और मांस-मदिरा की खरीद-फरोख्त जारी है। शक्तिपीठ शारदा देवी मैहर में तो शराब दुकान का पता ही शारदा मंदिर चौक है।
प्रदेश में डेढ़ दशक पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री उमा भारती ने महेश्वर में हुई अपनी कैबिनेट की बैठक में महेश्वर, अमरकंटक और उज्जैन को पवित्र शहर घोषित किया था। उसके बाद पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर और शिवराज सिंह चौहान ने कई नगरों को पवित्र घोषित किया और इनकी संख्या 17 हो गई।
पवित्र नगरों में संबंधित क्षेत्र और मंदिर के निश्चित दायरे में स्वच्छता और पवित्रता को सख्ती से बनाए रखने के कोई जतन नहीं हुए। सरकार ने भी किसी एजेंसी को इन सब पर निगरानी की जिम्मेदारी नहीं दी अथवा जिन विभागों पर यह जवाबदारी है उन्होंने इसकी जहमत नहीं उठाई। पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर भी स्वीकार करते हैं कि सरकारी स्तर पर इस योजना की मॉनिटरिंग ठीक से नहीं हो पाई।
*नहीं दिखाई इच्छाशक्ति*

इन शहरों को पवित्र नगर घोषित करने के बाद शासकीय स्तर पर व्यवस्था में बदलाव के लिए सरकार ने अपनी इच्छाशक्ति का परिचय नहीं दिया। कागजों में भले ही सब कुछ दुरुस्त हो लेकिन मंदिरों के आसपास अपवित्रता के दृश्य दिख जाते हैं।

*सियासी फायदे के लिए*

दरअसल, इन स्थलों के प्रति लोगों की आस्था को सियासी फायदे के लिए भुनाया जाता रहा। एक पवित्र नगर का एलान तो उपचुनाव के ठीक पहले किया गया, अन्य घोषणाओं में भी राजनीतिक निहितार्थ मौजूद रहे। बाद में नगरपालिका, ग्राम पंचायत अथवा नगर पंचायत को निर्धारित मापदंड पालन कराने अलग से राशि देने का इंतजाम नहीं हुआ।

*पवित्र नगरों के साथ नर्मदा की चिंता भी करें: शंकराचार्य*

धार्मिक स्थलों और नगरों की मर्यादा-पवित्रता सुनिश्चित नहीं हो पाना घोर निराशाजनक है। इसके लिए शासकीय पहल के साथ जनजागरुकता भी जरूरी है। प्रदेश की जीवनरेखा नर्मदा नदी तो जागृत देवी है उसकी सुरक्षा, संरक्षण एवं पवित्रता बनाए रखने के लिए सरकारी स्तर पर निरंतर,सख्त और गंभीर प्रयास जरूरी हैं।

*स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती, शंकराचार्य द्वारका-शारदा एवं ज्योतिष पीठ*

*उठाएंगे सख्त कदम: मंत्री*

प्रदेश के सभी पवित्र नगरों में निर्धारित व्यवस्थाओं को सुनिश्चित करने हम नए सिरे से समीक्षा करेंगे। पवित्र नगर के मापदंड लागू कराने के साथ सुधार के लिए जरूरी कदम भी उठाएंगे।

*पीसी शर्मा, मंत्री विधि विधायी, जनसंपर्क एवं अध्यात्म विभाग*

*प्रदेश में कब-किसे मिला पवित्र नगर का दर्जा*

उज्जैन, अमरकंटक एवं महेश्वर (3 फरवरी 2004)

ओरछा एवं ओंकारेश्वर(फरवरी 2004)

मंडला एवं मुलताई( 21 जनवरी 2008
)
दतिया(27 अगस्त 2008)

जबलपुर (आस्था नगरी 8 जनवरी 2008)

चित्रकूट, मैहर एवं सलकनपुर(20 फरवरी 2009)

मंडलेश्वर (15 अक्टूबर 2010)

पशुपतिनाथ मंदिर मंदसौर (9 नवंबर 2011)

ग्वारीघाट जबलपुर एवं बरमान(22 अप्रैल 2013)

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