
बेंगलुरु। असम में देश के सबसे लंबे डबल-डेकर बोगीबील ब्रिज के लोकार्पण समारोह में नहीं बुलाए जाने पर पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा ने मंगलवार को नाखुशी जाहिर की। तत्कालीन प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा ने 22 जनवरी, 1997 को इस पुल की आधारशिला रखी थी।
तत्कालीन प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा ने 22 जनवरी, 1997 को इस पुल की आधारशिला रखी थी।
पत्रकारों से बातचीत में देवेगौड़ा ने कहा, “कश्मीर तक रेलवे लाइन, दिल्ली मेट्रो और बोगीबील रेल-सड़क पुल उन परियोजनाओं में शामिल थे जिन्हें मैंने (प्रधानमंत्री के तौर पर) मंजूरी दी थी। इनमें से प्रत्येक परियोजना के लिए मैंने 100-100 करोड़ रुपये मंजूर किए थे और उनकी आधारशिला भी रखी थीं। लेकिन लोग आज भूल गए।”
जब उनसे पूछा गया कि क्या उन्हें लोकार्पण समारोह के लिए आमंत्रित किया गया था? इस पर उन्होंने कहा, “अइयो रामा! मुझे कौन याद करेगा। कुछ अखबारों ने शायद इसका जिक्र किया हो।”
देश को मिला सबसे लंबा डबल-डेकर पुल, चीन सीमा तक पहुंच आसान
दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की 94वीं जयंती पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को देश का सबसे लंबा बोगीबील रेल-सड़क पुल जनता को समर्पित कर दिया। इस मौके पर उन्होंने तिनसुकिया-नाहरलगुन इंटरसिटी एक्सप्रेस की शुरुआत भी की। 4.94 किलोमीटर लंबे बोगीबील पुल का निर्माण 21 अप्रैल, 2002 को अटल सरकार के कार्यकाल में ही शुरू हुआ था।
असम में ब्रह्मपुत्र नदी पर बना यह पुल दक्षिणी किनारे पर डिब्रूगढ़ को उत्तरी किनारे पर धीमाजी जिले से जोड़ता है। यह पुल देश का नया रक्षक साबित होगा, क्योंकि इसके जरिए अरुणाचल प्रदेश से चीन की सीमा तक सड़क व रेल से पहुंचना और रसद भेजना आसान हो जाएगा।
उड़ान भर सकेंगे लड़ाकू विमान
बोगीबील पुल का निर्माण विदेशी तकनीक और उपकरणों के इस्तेमाल से किया गया है। इसमें 80 हजार टन स्टील और 30 लाख सीमेंट की बोरियां लगी हैं। यह इतना मजबूत है कि रिक्टर स्केल पर सात की तीव्रता का भूकंप भी झेल सकता है। आपातस्थिति में इस पुल से लड़ाकू विमान भी उड़ान भर सकते हैं।
इसके बन जाने से अब पूर्वोत्तर सीमा तक भारतीय सेना की पहुंच आसान हो जाएगी। चीन से लगी सीमा तक सेना और सैन्य साजो-सामान पहुंचाने में वक्त बचेगा और वहां तैनात सैनिकों तक मदद भी जल्द पहुंचाई जा सकेगी। अरुणाचल प्रदेश में किबिथू, वलॉन्ग और चगलगाम चौकियों तक पहुंच भी आसान हो जाएगी।
पुल की विशेषता
पुल के निचले डेक पर दो रेल लाइनें हैं और ऊपरी डेक पर तीन लेन की सड़क है। ब्रह्मपुत्र की लहरों से इसकी ऊंचाई 32 मीटर है। इसके निर्माण की शुरुआती लागत 3,230 करोड़ थी लेकिन यह बढ़ते-बढ़ते 5,960 करोड़ रुपए हो गई। इसके 120 साल तक सुरक्षित रहने का दावा है।
चुनौतीपूर्ण था निर्माण
ब्रह्मपुत्र के दो सिरों को पुल से जोड़ना अपने आप में चुनौतीपूर्ण काम था। क्योंकि यह भारी बारिश और भूकंप की आशंका वाला इलाका है। इस डबल-डेकर पुल को भारतीय रेलवे ने बनाया है।
ये होंगे अन्य लाभ
- तिनसुकिया से नाहरलगुन के बीच शुरू की गई इंटरसिटी एक्सप्रेस हफ्ते में पांच दिन चलेगी
- पुल के साथ कई सड़कों और लिंक रेलवे लाइनों का निर्माण भी किया गया है
- डिब्रूगढ़ और नाहरलगुन की दूरी 700 किमी से घटकर 200 किमी हुई
- डिब्रूगढ़ से ईटानगर के बीच सड़क मार्ग से दूरी 150 किमी घटी, जबकि रेलमार्ग से यह दूरी 705 किमी कम हुई
- ईटानगर के लोगों को भी लाभ मिलेगा क्योंकि यह नाहरलगुन से सिर्फ 15 किमी दूर है
- डिब्रूगढ़ पूर्वोत्तर का तीसरा सबसे बड़ा शहर है। इससे धीमाजी के लोगों को एयरपोर्ट, बड़े स्कूल, कॉलेज और अस्पतालों की सुविधा मिलेगी
21 साल का सफर
- 1985 में असम समझौते में पुल का वादा
- 1997-98 में पुल निर्माण को मंजूरी
- तत्कालीन प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा ने 22 जनवरी, 1997 को किया शिलान्यास
- 2002 में वाजपेयी सरकार ने निर्माण शुरू कराया- 2007 में पुल को राष्ट्रीय प्रोजेक्ट का दर्जा मिला
- 2009 में पूरा होना था इस पुल का निर्माण




