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नेशनल रजिस्टर फॉर सिटीजन के ड्राफ्ट को लेकर राजनीतिक दलों में मचा बवाल

नई दिल्ली। असम में एनआरसी (नेशनल रजिस्टर फॉर सिटीजन) के ड्राफ्ट को लेकर राजनीतिक दलों में मचा बवाल खुद उन्हें ही घायल कर सकता है। शायद इसे भांपते हुए ही कांग्रेस थोड़ी सतर्क नजर आ रही है। लेकिन इससे इन्कार नहीं किया जा सकता कि भाजपा इसे और तूल देगी। चाहे अनचाहे यह राष्ट्रवाद का भी बड़ा मुद्दा बन सकता है।

सोमवार को असम में एनआरसी का ड्राफ्ट आने की धमक दिल्ली में भी सुनाई दी। संसद के दोनों सदनों में विपक्षी दलों ने एक तरह से आरोप लगाया कि प्रदेश में कई लाख लोगों को नागरिकता के अधिकार से वंचित किया जा रहा है। हालांकि सरकार की ओर से आश्वस्त किया गया है कि अभी लोगों को और मौका दिया जाएगा। लेकिन यह भी सच्चाई है कि असम समेत पूरे उत्तरपूर्व में बड़ी संख्या में बांग्लादेशी घुसपैठियों का कब्जा है।

यही कारण है कि वहां के मूल निवासी भी इससे निजात पाना चाहते हैं। लेकिन उतना ही सच यह भी है कि सामान्य तौर पर पूरा देश इस समस्या से निपटना चाहता है। ऐसे में विरोधी दल इसका जितना विरोध करेंगे, भाजपा के लिए यह साबित करना उतना ही आसान होगा कि वह राष्ट्र की बात कर रही है और विरोधी राजनीति की। कांग्रेस इसकी संवेदनशीलता को समझ रही है और यही कारण है कि वह सतर्क है।

बहरहाल, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ज्यादा उग्र हैं। उनकी परेशानी का कारण भी राजनीतिक है। पश्चिम बंगाल में लगभग 30 फीसद मुस्लिम आबादी है जो सामान्य तौर पर उनके वोटर माने जाते हैं। पश्चिम बंगाल में भी घुसपैठ का असर है। प्रदेश के भाजपा विधायक दिलीप घोष ने घोषणा कर दी है कि राज्य में भाजपा की सरकार बनी तो वहां भी एनआरसी लाया जाएगा।

बता दें कि प्रदेश में भाजपा कांग्रेस और वामदलों को पीछे छोड़कर तृणमूल कांग्रेस के लिए मुख्य विरोधी दल बन गई है। ऐसे में एनआरसी जैसा मुद्दा जाति, समुदाय से परे जाकर भाजपा को पैर फैलाने का मौका दे सकता है। वैसे भी आगामी लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा की नजरें उत्तरपूर्व के साथ साथ पश्चिम बंगाल पर हैं।

कांग्रेस ने कहा, एनआरसी पर सर्वदलीय बैठक बुलाए सरकार-

असम में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) के मसौदे को लेकर उठे बवंडर की सियासी संवेदनशीलता को देखते हुए कांग्रेस ने फिलहाल सतर्क रणनीति अपनाई है। इसी रणनीति के तहत पार्टी ने एनआरसी से जुड़े मसले को अंतरराज्यीय और मानवीय बताते हुए केंद्र सरकार से तत्काल सर्वदलीय बैठक बुलाने की मांग की है।

कांग्रेस का कहना है कि इस समस्या का न्यायोचित समाधान निकलने तक परिवारों को अलग नहीं किया जाना चाहिए। एनआरसी पर भाजपा की संभावित सियासी रणनीति से सशंकित कांग्रेस हाई कमान आगे की राजनीतिक दिशा पर वरिष्ठ नेताओं के साथ गंभीर मंत्रणा कर रहा है।

कांग्रेस को आशंका है कि भाजपा अगले लोकसभा चुनाव में एनआरसी के जरिये सियासी ध्रुवीकरण का बड़ा दांव चल सकती है और इसी वजह से एनआरसी के मसौदे के प्रकाशन का पार्टी ने सीधा विरोध करने से परहेज किया है। वहीं कांग्रेस की सहयोगी तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एनआरसी में 40 लाख लोगों को शामिल नहीं किये जाने के फैसले का विरोध करने की घोषणा की है।

कांग्रेस प्रवक्ता आनंद शर्मा ने कहा कि एनआरसी मसौदे के प्रकाशन के बाद गृह मंत्री राजनाथ सिंह का बयान साबित कर रहा है कि सरकार खुद मान रही कि इस पर पुनर्विचार करने की जरूरत है। इसलिए उम्मीद करते हैं कि जब समीक्षा होगी तो सरकार पीढ़ियों से रह रहे लोगों को विस्थापित नहीं करेगी। शर्मा ने कहा कि यह केवल एक राज्य का नहीं, बल्कि पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, मेघालय समेत कई पूर्वोत्तर राज्यों से जुड़ा मसला है जिसमें कई भाषाओं के लोग शामिल हैं।

कांग्रेस नेता ने कहा कि एनआरसी में शामिल नहीं किए गए लोगों में बड़ी संख्या में चाय बगान के मजदूर भी हैं। उनके मुताबिक, सरकार ने जिन 16 में से कोई एक दस्तावेज होने पर नागरिकता का प्रमाण माना था, उसमें से एक से अधिक दस्तावेज होने के बाद भी काफी लोगों को एनआरसी में शामिल नहीं किया गया है। इसीलिए एनआरसी की प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठते हैं।

मानवीय संकट के इस मसले को राजनीति का खेल खेलने का जरिया नहीं बनाया जाना चाहिए। उन्होंने पुष्टि की कि कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व एनआरसी के मसले पर वरिष्ठ नेताओं के साथ विचार-विमर्श कर रहा है।

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